https://youtu.be/STnZJC_n6-Q
जहां स्त्रीजाति का आदर-सम्मान होता है, उनकी आवश्यकताओं-अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार पर देवतागण प्रसन्न रहते हैं । जहां ऐसा नहीं होता और उनके प्रति गन्दा व्यवहार किया जाता है, वहां देवकृपा नहीं रहती है और वहां संपन्न किये गये कार्य सफल नहीं होते हैं ।
एक ही माता के पेट और एक ही नक्षत्र में उत्पन्न हुए बालक गुण, कर्म और स्वभाव में एक समान नहीं होते, जैसे बेर-वृक्ष के सभी फल और उनके कांटे एक जैसे नहीं होते, उनमें अंतर होता है। ।।4।।
चाणक्य ने बेर और कांटों की उपमा एक विशेष विचार से दी है। एक ही बेर के वृक्ष पर लगे हुए सभी फल मीठे नहीं होते। बेर वृक्ष पर कांटे भी होते हैं, परंतु वह कांटे भी एक जैसे कठोर नहीं होते।
इसी प्रकार यह आवश्यक नहीं कि एक ही माता-पिता के और एक ही नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चों के गुण, कर्म और स्वभाव एक जैसे हों। उनका भाग्य तथा उनकी रुचियां एक जैसी नहीं होतीं। माता-पिता के एक होने पर भी प्रारब्ध और परिस्थितियों का अंतर तो होता ही है।
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